भारत के चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अलग-अलग विचारों का सम्मान करने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा कि असहमतियां बढ़कर कभी नफ़रत में नहीं बदलनी चाहिए और इस नफ़रत को हिंसा का रूप भी नहीं लेने देना चाहिए.
पत्रकारिता जगत के लोगों को दिए जाने वाले रामनाथ गोयनका पुरस्कार समारोह में सीजेआई चंद्रचूड़ ने ये बातें कहीं. सीजेआई इस पुरस्कार समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए थे.
आज प्रेस रिव्यू की शुरुआत ‘प्रेस की आज़ादी’ पर सीजेआई के इसी बयान के साथ.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “हमारे देश और दुनिया भर में कई पत्रकार कठिन और प्रतिकूल परिस्थितियों में काम करते हैं, लेकिन वो किसी भी विपत्ति और विरोध के सामने डटे रहते हैं. ये वो गुण है, जिसे खोना नहीं चाहिए.”
उन्होंने कहा, “नागरिक के तौर पर, संभव है कि हम किसी पत्रकार के रुख़ या उसके दिए निष्कर्ष से सहमत न हों. मैं भी कई दफ़ा बहुत से पत्रकारों से असहमत होता हूं. आख़िरकार, हम में से ऐसा कौन है जो सबकी बातों से सहमत हो? लेकिन ये असहमति नफ़रत में नहीं बदलनी चाहिए और इसे हिंसा का रूप नहीं लेने देना चाहिए.”
सीजेआई ने एक लोकतंत्र के लिए प्रेस की आज़ादी की अहमियत पर ध्यान दिलाते हुए कहा, “एक राज्य की संकल्पना में मीडिया चौथा स्तंभ है और एक लोकतंत्र का अभिन्न अंग. एक स्वस्थ लोकतंत्र में हमेशा पत्रकारिता को ऐसे संस्थान के तौर पर बढ़ावा देना चाहिए जो सत्ता से कठिन सवाल कर सके. जब प्रेस को ठीक ऐसा करने से रोका जाता है तो, किसी भी लोकतंत्र की जीवंतता से समझौता किया जाता है. अगर किसी देश को लोकतंत्र बने रहना है तो प्रेस को आज़ाद रहना चाहिए.”
उन्होंने कहा, “ज़िम्मेदार पत्रकारिता सच का प्रकाश-स्तंभ है जो हमें बेहतर कल की ओर ले जा सकती है. ये वो इंजन है जो सच, न्याय और समानता पर आधारित लोकतंत्र को आगे ले जाता है. हम डिजिटल युग में जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उसमें पत्रकारों के लिए रिपोर्टिंग करते समय सटीकता, निष्पक्षता और ज़िम्मेदारी के मानकों को बनाए रखना पहले कहीं ज़्यादा ज़रूरी है.”
उन्होंने कहा, “सभी तरह के समाज नि:संदेह उन समस्याओं के प्रति निष्क्रिय, सुस्त और बेअसर हो जाते हैं जो उन्हें परेशान करती हैं और पत्रकारिता (अपने सभी रूपों में) हमें इस सामूहिक जड़ता या निष्क्रियता से बाहर निकालने वाले अहम पहलुओं में से एक है.”